पुण्य तिथि क्यूँ पुण्यतिथि मनाते है
पुण्य तिथि
पुण्य तिथि की परिभाषा हम,भूल चुके हैं आज।
जिसने पाप किये जीवन भर,तोड़े कई समाज।
अपनी कोठी भरने हेतु,शोषण किया गरीब का।
स्वार्थ पूरा करने हेतु , तोड़े रीति रिवाज।
ऐसे अधम लोगों की भी, मृत्यु को हम गाते हैं।
पापी की भी बड़े शान से, पुण्य तिथि मनाते हैं।
गलियों के गुंडों के भी शहरों में पोस्टर सजते हैं।
इनके मृत्यु दिवस पर भी, शहीदी गाने बजते हैं।
गुंडों में और महापुरुषों में अंतर करना भूल गए।
मजार गुंडों बदमाशों के अब, फूलों से गमकते हैं।
गुंडों की करतूतों को अब , श्रद्धा से सुनाते हैं।
पापी की भी बड़े शान से, पुण्य तिथि मनाने हैं।
आज का चेहरा दिखलाता, वो जो तिकड़मबाज है।
आज वो तिकड़मबाज ही तो एक बड़ी आवाज है।
परोपकार बेअर्थ है , बस दिखावा होना चाहिए। जनमानस में घुस पाने का,सबसे सरल ये राज है।
ऐसे ही लोगों के सर पे,हम-तुम मुकुट सजाते हैं।
पापी की भी बड़े शान से , पुण्य तिथि मनाते हैं।
चंद्रशेखर,भगतसिंह को,अब हम क्यूँकर याद करें।
नेताजी सुभाषचंद्र की,आज किसलिए बात करें।
लालबहादुर शास्त्री को,आज की पीढ़ी क्यूँ जाने।
राजगुरू, सुखदेव के नामों का,भला क्यूँ नाद करें।
इन महात्माओं के छाँव तले ही,हम साँस ले पाते हैं।
पापी की भी बड़े शान से , पुण्य तिथि मनाते हैं।
आज इस पृथ्वी दिवस पर,आओ शपथ हम लेते चलें।
आने वाली पीढ़ी को पुण्य तिथि का अर्थ देते चलें।
पुण्य तिथि का अर्थ है होता,पुण्यात्मा अवसान दिवस।
इस शब्द की गरिमा को, उचित स्थान अब देते चलें।
आओ मिलकर जन – जन को ,सच्चाई समझाते हैं।
कौन होता पुण्यात्मा, क्यूँ पुण्य तिथि मनाते हैं।
राजेश शुक्ला “काँकेरी” :-