गावों के नाम की उड़ायी जा रही धज्जियां
मनोज जायसवाल/वर्तमान मंथन : यह तो पता नहीं कि किसने बिना किसी विचार और घोषणा के इन गावों के नामों को बदल दिया। किस बात की ऊपज रही कि जेपरा जैसे स्वावलंबी गांव जिसके सपूत भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में उच्च पदों पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं की जन्म स्थली भूमि के नाम को ही बैसाखी का सहारा देते जेप्रा कर दिया।
संभवतया जेपरा ही नहीं अतीत में किसी भी गांव के नाम के पीछे की जुड़ी मान्यताओं को मिथ्या साबित करने का प्रयास किया कि इन गावों के नाम के पीछे ऐसी कोई कथा कहानी मान्यताएं नहीं है। लंबे समय तक सड़क निर्माण के वक्त भी शायद इन्होंने नाम को स्पष्ट नहीं सुना हो,या इनका उच्चारण ही ऐसा रहा है। लेकिन एक गांव क्या यहां तो कई गावों के नामों की धज्जियां उड़ाई गई है। ऐसा भी नहीं है कि किसी गांव के नाम सुचक बोर्ड अनेक हों। एक दो ही होते हैं, उसमें भी हिन्दी मात्रात्मक त्रुटियों के जरीये टांग तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बानगी तो जेपरा का जेप्रा ही नहीं। जेपरा तो बानगी मात्र है, इससे प्रकार की त्रुटियों से राष्ट्रीय राजमार्ग 30 भी नहीं छूटा है,
इस प्रकार गावों के नामों की खिल्लियां उड़ाते बोर्ड की। अच्छे गावों की गलत उच्चारण के नाम बनायी गयी महंगी रेडियम की ये साईन बोर्ड किस प्रकार दूर के आगंतुकों के लिए भ्रमयुक्त परेशानी का सबब बनेगी इसका विचार करने वाला कौन है? सड़क बनाने में यदि जल्दबाजी की गयी होगी तो क्या बोर्ड बनाने में भी जल्दबाजी रही होगी। इस प्रकार गलत नाम का बोर्ड टांगना ही लोक भावनाओं के विरूद्व है।
तो क्या एक बोर्ड के लिए भी आंदोलन की जरूरत पड़ेगी। कौन है, जिम्मेदार? क्या इस प्रकार गलत नाम दर्शित करते बोर्ड को बदला जायेगा? या अन्य कार्य की तरह चलो चलता है कह कर कम्प्यूटर को दोषी ठहराते पल्ला झाड़ा जायेगा