औद्योगिक क्षेत्र के कैमिकल्स फैक्ट्री बन्द करने की मांग,50 एकड़ खेतिहर भूमि निगल जाने से आदिवासी किसान हुए लाचार

  • खतरनाक कैमिकल्स से फिजा भी हुई दूषित
  • भूखों मरने की नौबत आ रही ,
  • शिकायत पर जिम्म्मेदार विभाग नहीं कर रहे कार्यवाही

कोरबा। इंडस्ट्रियल एरिया खरमोरा में संचालित लघु उद्योग आसपास बसे आबादी के लिए नासूर बन गए हैं। लघु उद्योगों से निकलने वाले कैमिकल युक्त विषाक्त पानी खेतों में प्रवाहित होकर दर्जनों किसानों के 50 एकड़ से अधिक खेतिहर भूमि को बंजर बना चुकी है। सुरक्षित आबो हवा में सांस लेने यहाँ के बाशिंदे एक बार फिर इन जानलेवा लघु उद्योगों को जिला प्रशासन से बंद करने की मांग मुखर कर रहे हैं।
यहाँ बताना होगा कि सन 1979 में खरमोरा में उद्योग नीति के तहत 100 एकड़ नजूल भूमि को औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना के लिए लीज पर दिया गया था । 2 प्रतिशत वार्षिक भू -भाटक की दर पर 94 औद्योगिक इकाई यहाँ स्थापित हैं। कोर्ट केस की वजह से 3 उद्योग बन्द हैं। शेष संचालित 91 उद्योगों में कैमिकल्स ,फैब्रिकेशन ,फ्लाई ऐशब्रिक्स ,आरामशीन ,आक्सीजन प्लांट,इलेक्ट्रोड निर्माण के अलावा ,कूलर,आलमारी और पतंग बनाने वाले छोटे उद्योग शामिल हैं। पशुओं का आहार भी औद्योगिक क्षेत्र में बनाया जाता है। संयंत्रों में बड़े पैमाने पर कच्चे माल की खपत होती है । इसमें कोयला के अलावा अन्य सामग्री भी शामिल है। आबादी के बीच स्थापित कैमिकल्स उद्योगों की वजह से खरमोरा के दर्जनों किसानों का 50 एकड़ से अधिक खेतिहर भूमि भेंट चढ़ गई है। उद्योगों से निकलने वाले रासायनिक पदार्थों से उपजाऊ भूमि बंजर बन गई है। कैमिकल्स फैक्ट्री का शुरुआती दौर से ही प्रभावित किसानों सहित स्थानीय निवासियों द्वारा विरोध किया जाता रहा है। लेकिन जिम्मेदार विभाग हमेशा जनता की आवाज एवं समस्याओं को अनसुना करता आया है। लघु उद्योगों के पूंजीपति संचालकों ने अधिकारियों को अपने पक्ष में लेकर समय समय पर शिकायतों के आधार पर की जाने वाली जाँच को प्रभावित कर अपने पक्ष में करने में सफल रहे। आज आलम यह है कि प्रभावित किसान अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। हॉल ही के कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में आबादी का विस्तार भी हुआ है । साथ ही कैमिकल्स उद्योगों की संख्या व उत्पादन भी बढ़ा है लिहाजा इसी अनुपात में प्रदूषण का स्तर भी बढ़ा है।जिसका विपरीत प्रभाव लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। एक बार फिर यहाँ के बाशिंदे फसल एवं उनकी जिंदगी के लिए नासूर बन चुके लघु उद्योगों को बन्द करने की मांग मुखर कर रहे हैं ।

प्रभावित किसानों  को  महज 8 हजार रुपए प्रति एकड़ देते हैं मुआवजा

प्रभावित किसानों की मानें तो उन्हें प्रति एकड़ महज 8 हजार का मुआवजा उद्योग प्रदान कर रहे हैं। जबकि प्रति एकड़ उन्हें 22 से 25 क्विंटल धान की प्राप्ति हो रही थी। सरकारी दर ही देखें आज उन्हें प्रति एकड़ 22 क्विंटल धान के लिहाज से करीब 40 हजार रुपए का लाभ होता। इसकी तुलना में मुआवजा की यह दर 25 फीसदी भी नहीं है ।

पर्यावरण विभाग पर उठे सवाल,अधिकारियों ने साधी चुप्पी

औद्योगिक क्षेत्र खरमोरा में संचालित कैमिकल्स फैक्ट्री संचालकों को संरक्षण देने आरोप पर्यावरण विभाग पर लगता रहा है। हसदेव एक्सप्रेस न्यूज ने भी मामले में किसानों के आरोप के बाद विभाग का पक्ष लेने क्षेत्रीय अधिकारी अंकुर साहू से संपर्क किया। लेकिन 2 दिन तक वो कॉल रिसीव नहीं कर जवाब देने से बचते रहे। व्हाट्सएप से किसानों की सनस्याओं से जुड़ी क्लिप सेंड करने पर भी उन्होंने विभाग का पक्ष नहीं रखा। इससे साफ जाहिर होता है किसानों का आरोपों में काफी हद तक सत्यता है। जिले में एसीबी ,एनटीपीसी के राखड़ बांध का हिस्सा हॉल ही में टूटा हुआ है। राखड़ युक्त प्रवाहित पानी किसानों के खेतों को डूबा दिया है। किसी की खेती की तैयारी तो किसी किसानों द्वारा लगाए गए थरहा मेहनत पर पानी फिर गया है। पर पर्यावरण विभाग के अफसर उद्योगों के खिलाफ कार्यवाई करना तो दूर प्रभावित स्थल तक झांकना भी मुनासिब नहीं समझ रहे। दफ्तर में बैठे बैठे कर्तव्यों का निर्वहन किया जा रहा है ।
महाप्रबंधक उद्योग ए. तिर्की से उनका पक्ष पूछने पर कहा कि मामले में पर्यावरण विभाग को कार्यवाई करनी चाहिए।यह उन्हीं की जिम्मेदारी है। उद्योगों के खिलाफ प्रदूषण के मामले में कार्यवाई हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर है। फिर भी सम्बंधित विभाग के अधिकारियों को इससे अवगत करा देंगे।

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