मंदहा के सुन गोठ
पागल कहूं जानगे मेहा पगला हों,
जान ले समझदारी के हाबे करीब।
वैसे तो डिंगहा दरुवाहा नइ समझे,
कभू अपन आप ला वोहा गरीब ।
अपने टुटहा चप्पल में घिलरत रही,
फेर रुतबा बताथे सामने गाड़ा गाड़ा ।
पव्वा चढ़ीस ताहने फोकटके खरीदी,
मालगुजार के लेवागे हे जम्मो बांड़ा मंदहा के सुन गोठ
खुद के जांगर चलाए के शक्ति नइ हे,
ओखर सामने सब नेता होजाथे फेल।
बातें बात में भेजवा डारत रहिथे वो,
यहां तक के थानादार ला घलो जेल।
दूसर ला कहिथे कनिहा भोचकत हे,
इज्जत खातिर संभाल तोर पतलून।
गोंदली के टुकड़ा मोर जेब में हावय,
संग में चाबे ला देते का मोर बर नून। मंदहा के सुन गोठ
मंदहा ज्यादा मंद पी के मरी जाथय,
फेर परिवार के होथे हालत करलाई।
सड़क किनारे घोंडत ले पियव झन ,
हाथ जोड़ के गजपति कहे मोर भाई। मंदहा के सुन गोठ