नीमगिलोय : सभी प्रकार की बीमारियों को दूर करने के लिए गिलोय है रामबाण,जानिए विस्तार से

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                                    क्या है गिलोय

यु तो आपने गिलोय के बारे में बहुत  बातें जरुर सुनी होंगी और आपको  गिलोय के कुछ फायदों के बारे में पता भी होगा, लेकिन इतना तो जरुर है कि आपको गिलोय के बारे में उतनी जानकारी नहीं होगी, जितना कि हम आपको आज बताने जा रहे हैं। गिलोय के बारे में प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में बहुत सारी फायदेमंद नुस्के बताये गये हैं। आयुर्वेद में इसे रसायन माना गया है जो कि स्वास्थ्य की दृष्टि से सभी मनुष्यों  लिए बहुत की अच्छा होता है।

गिलोय के पत्ते  स्वाद में कसैले, कड़वे और तिक्त होते हैं। गिलोय त्रिदोष शामक है इसका उपयोग कर वात-पित्त और कफ को ठीक जनित बीमारियों को ठीक करने के लिए किया जा सकता है। यह सुपाच्य होती है, बलवर्धक भूख बढ़ाती है, साथ ही आंखों के लिए भी लाभकारी होती है। आप गिलोय के इस्तेमाल से क्षुधा (प्यास), तृष्णा (जलन), मधुमेह (डायबिटीज), कोढ़ (कुष्ठ) और पीलिया (जौंडिस), पांडू, कमला इत्यादी  रोग में इसका लाभ ले सकते हैं। इसके साथ ही यह वीर्य और बुद्धि को तीक्ष्ण करती  है और बुखार, उलटी, सूखी खाँसी, हिचकी, बवासीर, टीबी, मूत्र रोग में भी काम में आती है। महिलाओं की शारीरिक कमजोरी की स्थिति में यह बहुत ही अधिक लाभप्रद है।

चलिए जानते है कि गिलोय क्या है  :-

गिलोय का नाम तो आप सभी लोगो ने सुना ही होगा लेकिन क्या आपको गिलोय की पहचान है? यह  देखने में कैसा होता है। तो आइये हम  गिलोय के पहचान और इनके  औषधीय गुणों  के बारे में जानने के लिए चलिये विस्तार से चर्चा करते हैं।

गिलोय को  अमृता, अमृतवल्ली के नाम से जाना जाता है,  अमृतावल्ली अर्थात यह कभी न सूखने वाली एक बड़ी लता है। इसका तना देखने में सफ़ेद धारीदार होता है और  रस्सी जैसा लगता है। इसके कोमल तने तथा शाखाओं से जडें निकलती हैं। इस पर पीले व हरे रंग के फूलों के गुच्छे लगते हैं। इसके पत्ते कोमल तथा पान के आकार के होते हैं।

इसकी लता जिस पेड़ पर चढ़ती है, उस वृक्ष के कुछ गुणधर्म  भी इसके अन्दर आ जाते हैं। इसीलिए  नीमगिलोय मतलब नीम के पेड़ पर चढ़ी गिलोय सबसे औषधीय गुणधर्म के हिसाब से अच्छी मानी जाती है। आधुनिक आयुर्वेदाचार्यों (चिकित्साशात्रियों) के अनुसार गिलोय हानिकारक  बैक्टीरिया,वायरस से लेकर पेट के कीड़ों को भी खत्म करती है। टीबी रोग का कारण बनने वाले वाले जीवाणु की वृद्धि को रोकती है। आंत और मूत्र संसथान  के साथ-साथ पूरे शरीर  को प्रभावि

गिलोय के प्रकार :-

गिलोय की अनेक  प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें मुख्यतया निम्न प्रजातियों का उपयोग  चिकित्सा के लिए किया जाता है।

  1. गिलोय (Tinosporacordifolia (Willd.) Miers)
  2. Tinosporacrispa (L.) Hook. f. & Thomson 3. Tinospora sinensis (Lour.) Merr. (Syn- Tinospora malabarica (Lam.) Hook. f. & Thomson)

अनेक भाषाओं में गिलोय के नाम :-

गिलोय को अलग अलग क्षेत्रो में  को अलग अलग नाम से जाना जाता है जिसके कुछ नाम  निम्न प्रकार है  :-

गिलोय का लैटिन नाम  टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया Tinospora cordifolia Different Languages)

(Willd.) Miers, Syn-Menispermum cordifolium Willd.) है और यह मैनिस्पर्मेस (Menispermaceae) कुल है। इसे इन नामों से भी जानी जाती हैः-

 

  • Hindi – गडुची, गिलोय, अमृता
  • English – इण्डियन टिनोस्पोरा (Indian tinospora), हार्ट लीव्ड टिनोस्पोरा (Heart leaved tinospora), मून सीड (Moon seed), गांचा टिनोस्पोरा (Gulancha tinospora);  टिनोस्पोरा (Tinospora)
  • Bengali (Giloy in Bengali) – गुंचा (Gulancha), पालो गदंचा (Palo gandcha), गिलोय (Giloe)
  • Sanskrit – वत्सादनी, छिन्नरुहा, गुडूची, तत्रिका, अमृता, मधुपर्णी, अमृतलता, छिन्ना, अमृतवल्ली, भिषक्प्रिया
  • Oriya – गुंचा (Gulancha), गुलोची (Gulochi)
  • Kannada – अमृथावल्ली(Amrutavalli), अमृतवल्ली (Amritvalli), युगानीवल्ली (Yuganivalli), मधुपर्णी (Madhuparni)
  • Gujarati – गुलवेल (Gulvel), गालो (Galo)
  • Goa – अमृतबेल (Amrytbel)
  • Tamil – अमृदवल्ली (Amridavalli), शिन्दिलकोडि (Shindilkodi)
  • Telugu – तिप्पतीगे (Tippatige), अमृता (Amrita), गुडूची (Guduchi)
  • Nepali – गुर्जो (Gurjo)
  • Punjabi – गिलोगुलरिच (Gilogularich), गरहम (Garham), पालो (Palo)
  • Marathi – गुलवेल (Gulavel), अम्बरवेल(Ambarvel)
  • Malayalam – अमृतु (Amritu), पेयामृतम (Peyamrytam), चित्तामृतु (Chittamritu)
  • Arabic – गिलो (Gilo)
  • Persian – गुलबेल (Gulbel), गिलोय (Giloe)

 गिलोय के फायदे

गिलोय के औषधीय गुणों को देखते हुए  और इसको बहुत तरह के बीमारियों के लिए उपचारस्वरूप इस्तेमाल किया जाता है लेकिन कई बीमारियों में  गिलोय के नुकसान से भी सेहत पर असर पड़ सकता है। इसलिए गिलोय का औषधीय प्रयोग, प्रयोग की मात्रा और तरीका का सही ज्ञान होना ज़रूरी है-

आँखों के रोग में है गुणकारी :-

गिलोय के औषधीय गुण आँखों के रोगों से राहत दिलाने में बहुत मदद करते हैं। इसके लिए 10 मिली गिलोय के रस में 1-1 ग्राम शहद व सेंधा नमक मिलाकर खूब अच्छी प्रकार से खरल में पीस लें। इसे आँखों में काजल की तरह लगाएं। इससे अँधेरा छाना, चुभन, और काला तथा सफेद मोतियाबिंद रोग ठीक होते हैं।

गिलोय रस में त्रिफला चूर्ण  मिलाकर काढ़ा बनायें। 10-20 मिली काढ़ा में एक ग्राम पिप्पली चूर्ण व शहद मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से आँखों की रौशनी बढ़ जाती है। गिलोय का सेवन करते समय एक बात का ध्यान रखना पड़ेगा कि इसका सही मात्रा और सही तरह से सेवन करने पर ही  आँखों को मिल सकता है।

कान की बीमारी की बीमारी में है लाभदायक :-

ताजे गिलोय के तने को पानी में घिसकर गुनगुना कर लें। इसे कान में 2-2 बूंद दिन में दो बार कान डालने से कान का मैल (ear wax) निकल जाता है। गिलोय बिना कोई नुकसान पहुँचाये कान से मैल निकालने में मदद करते हैं l

हिचकी को रोकने के लिए गुणकारी है गिलोय :-

गिलोय तथा सोंठ के चूर्ण को (नसवार की तरह) नक् से सूँघने से हिचकी बन्द होती है। गिलोय  एवं सोंठ के चूर्ण की चटनी बनाकर इसमें दूध मिलाकर पिलाने से भी हिचकी आना बंद हो जाती है। गिलोय का फायदा तभी होगा जब आप इसे सही मात्रा में ग्रहण करे l

टीबी के रोग में फायदेमंद है  गिलोय :-

गिलोय का औषधीय गुण टीबी रोग के समस्याओं से छुटकारा दिलाने में मदद करता हैं l  अश्वगंधा, गिलोय, शतावर, दशमूल, बलामूल, अडूसा, पोहकरमूल तथा अतीस इन सब को औषधि के रुप में बनाने के लिए इन सब चीजों के साथ मिलाकर काढ़ा बनाने की ज़रूरत होती है।  सभी को बराबर भाग में लेकर इसका काढ़ा बनाएं। 20-30 मिली काढ़ा को सुबह और शाम सेवन करने से राजयक्ष्मा मतलब टीबी की बीमारी ठीक होती है। इस दौरान दूध का सेवन करना चाहिए। इसका सही तरह से सेवन ही यक्ष्मा (टीबी रोग) में गिलोय  का  पूरी तरह से लाभ उठा सकते हैं।

उल्टी में गिलोय का प्रयोग :-  

यदि एसिडिटी के कारण उल्टी हो तो 10 मिली गिलोय रस में 4-6 ग्राम मिश्री मिला लें। इस काढ़े को सुबह और शाम पीने से उल्टी बंद हो जाती है। गिलोय को 125-250 मिली मात्रा में चटनी बना ले इस चटनी में 15 से 30 ग्राम शहद मिला लें।

इसे दिन में तीन बार सेवन करने से उल्टी की समस्या ठीक हो जाती है। 20-30 मिली गुडूची के काढ़े में मधु मिलाकर पीने से बुखार के कारण होने वाली उलटी बंद होती है। अगर उल्टी से परेशान है तो इसका  सही तरह से एवं सही मात्रा में सेवन करना जरुरी l

 कब्ज में गिलोय का प्रयोग :-

कब्ज में गई गुणकारी गिलोय,गिलोय के औषधीय गुणों के कारण उसको  10-20 मिली रस के साथ गुड़ का सेवन करने से कब्ज में फायदा होता है। सोंठ, मोथा, अतीस तथा गिलोय को बराबर भाग में कर जल में खौला कर काढ़ा बनाएं। इस काढ़ा को 20-30 मिली की मात्रा में सुबह और शाम पीने से अपच एवं कब्ज की समस्या से राहत मिलती है l

बवासीर के उपचार में गिलोय का प्रयोग :- 

गिलोय का काढ़ा बवासीर में बहुत ही लाभकारी है, हरड़, गिलोय तथा धनिया को बराबर भाग में (20-20 ग्राम) लेकर आधा लीटर पानी में अच्छी तरह उबालकर काढ़ा तैयार करे l  जब पानी एक चौथाई रह जाय तो इसे उतारकर छान ले यह आपका काढ़ा तैयार हो गया । इस काढ़ा में गुड़ डालकर सुबह और शाम पीने से बवासीर की बीमारी ठीक होती है।

पीलिया रोग में गिलोय का प्रयोग :-

गिलोय त्रिदोष शामक  होने के कारण पीलिया रोग में भी कारगर सिद्ध होता है l

गिलोय में पाए जाने वाले  औषधीय गुणों के कारण यह  पीलिया से राहत दिलाने में बहुत मदद करते हैं। गिलोय के फायदे ‍का  लाभ उठाने के लिए सही तरह से प्रयोग करना भी ज़रूरी होता है।

  • गिलोय के 20-30 मिली काढ़ा में 2 चम्मच शहद मिलाकर दिन में तीन-चार बार पिलाने से पीलिया रोग में लाभ होता है।
  • गिलोय के 10-20 पत्तों को पीसकर एक गिलास छाछ में मिलाकर तथा छानकर सुबह के समय पीने से पीलिया ठीक होता है।
  • गिलोय के तने के छोटे-छोटे टुकड़ों की माला बनाकर पहनने से पीलिया रोग में लाभ मिलता है।
  • पुनर्नवा,नीम की छाल, पटोल के पत्ते, सोंठ, कटुकी, गिलोय, दारुहल्दी, हरड़ को 20 ग्राम लेकर 320 मिली पानी में पकाकर काढ़ा बनायें। इस काढ़ा को 20 मिली सुबह और शाम पीने से पीलिया, हर प्रकार की सूजन, पेट के रोग, बगल में दर्द, सांस उखड़ना तथा खून की कमी में लाभ होता है।
  • गिलोय रस एक लीटर, गिलोय का पेस्ट 250 ग्राम, दूध चार लीटर और घी एक किलो लेकर धीमी आँच पर पका लें। जब घी केवल रह जाए तो इसे छानकर रख लें। इस घी की 10 ग्राम मात्रा को चौगुने गाय के दूध में मिलाकर सुबह और शाम पीने से खून की कमी, पीलिया एवं हाथीपाँव रोग में लाभ होता है।

लीवर विकार में गुणकारी है गिलोय :-

गिलोय में पाए जाने वाले  औषधीय गुणों के कारण यह  लीवर में होने वाले समस्त प्रकार के व्याधि में बहुत ही असरदार है l

18 ग्राम ताजी गिलोय, 2 ग्राम अजमोद, 2 नग छोटी पीपल एवं 2 नग नीम को लेकर सेक लें। इन सबको मसलकर रात को 250 मिली जल के साथ मिट्टी के बरतन में रख दें। सुबह पीस, छानकर पिला दें। 15 से 30 दिन तक सेवन करने से लीवन व पेट की समस्याएं तथा अपच की परेशानी ठीक होती है।

मधुमेह (डायबिटीज) की बीमारी में गिलोय का प्रयोग :-

गिलोय में पाए जाने वाले  औषधीय गुणों के कारण यह  इसका प्रयोग मधुमेह भी किया जाता है

गिलोय जिस तरह डायबिटीज कंट्रोल करने में फायदेमंद होता है लेकिन जिन्हें कम डायबिटीज की शिकायत हो, उन्हें गिलोय के नुकसान से सेहत पर असर भी पड़ सकता है।

  • गिलोय,खस, पठानी लोध्र, अंजन, लाल चन्दन, नागरमोथा, आवँला, हरड़ लें। इसके साथ ही परवल की पत्ती, नीम की छाल तथा पद्मकाष्ठ लें। इन सभी द्रव्यों को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर कूट-पीसकर, छानकर रख लें। इस चूर्ण को 10 ग्राम की मात्रा में लेकर मधु के साथ मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करें। इससे डायबिटीज में लाभ होता है।
  • गिलोय के 10-20 मिली रस में 2 चम्मच शहद मिलाकर दिन में दो-तीन बार पीने से भी डायबिटीज में फायदा होता है।
  • एक ग्राम गिलोय सत् में 3 ग्राम शहद को मिलाकर सुबह शाम सेवन करने से डायबिटीज में लाभ मिलता है।
  • 10 मिली गिलोय के रस को पीने से डायबिटीज, वात विकार के कारण होने वाली बुखार तथा टायफायड में लाभ होता है।

मूत्रकृच्छ रोग (रुक-रुक कर पेशाब होना) में गिलोय का प्रयोग :-

गिलोय में पाए जाने वाले  औषधीय गुणों के कारण इसका उपयोग मूत्र संसथान सम्बन्धी समस्त प्रकार के विकार में इसका उपयोग किया जाता है l

गुडूची के 10-20 मिली रस में 2 ग्राम पाषाण भेद चूर्ण और 1 चम्मच शहद मिला लें। इसे दिन में तीन-चार बार सेवन करने से रुक-रुक कर पेशाब होने की बीमारी में लाभ होता है।

गठिया रोग  में  गिलोय का प्रयोग :-  

गिलोय गठिया रोग में भी बहुत ली लाभकारी सिद्ध होता है l

गिलोय  के 5-10 मिली रस अथवा 3-6 ग्राम चूर्ण या 10-20 ग्राम पेस्ट या फिर 20-30 मिली काढ़ा को रोज कुछ समय तक सेवन करने से गिलोय के फायदे (giloy ke fayde) पूरी से मिलते हैं और गठिया में अत्यन्त लाभ होता है। सोंठ के साथ सेवन करने से भी जोड़ों का दर्द मिटता है।

फाइलेरिया (हाथीपाँव) में गिलोय का प्रयोग :-

10-20 मिली गिलोय के रस में 30 मिली सरसों का तेल मिला लें। इसे रोज सुबह और शाम खाली पेट पीने से हाथीपाँव या फाइलेरिया रोग में लाभ होता है।

 कुष्ठरोग  (कोढ़ की बीमारी) में गिलोय का प्रयोग :-

10-20 मिली गिलोय के रस को दिन में दो-तीन बार कुछ महीनों तक नियमित पिलाने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है।

ज्वर (बुखार) में गिलोय का प्रयोग :- 

  • 40 ग्राम गिलोय को अच्छी तरह मसलकर, मिट्टी के बरतन में रख लें। इसे 250 मिली पानी मिलाकर रात भर ढककर रख लें। इसे सुबह मसल-छानकर प्रयोग करें। इसे 20 मिली की मात्रा दिन में तीन बार पीने से पुराना बुखार ठीक हो जाता है।
  • 20 मिली गिलोय के रस में एक ग्राम पिप्पली तथा एक चम्मच मधु मिला लें। इसे सुबह और शाम सेवन करने से पुराना बुखार, कफ, तिल्ली बढ़ना, खांसी, अरुचि आदि रोग ठीक होते हैं।
  • बेल,अरणी, गम्भारी, श्योनाक (सोनापाठा) तथा पाढ़ल की जड़ की छाल लें। इसके साथ ही गिलोय, आँवला, धनिया लें। इन सभी की बराबर-बराबर लेकर इनका काढ़ा बना लें। 20-30 मिली काढ़ा को दिन में दो बार सेवन करने से वातज विकार के कारण होने वाला बुखार ठीक होता है।
  • मुनक्का, गिलोय, गम्भारी, त्रायमाण तथा सारिवा से बने काढ़ा (20-30 मिली) में गुड़ मिला ले। इसे पीने अथवा बराबर-बराबर भाग में गुडूची तथा शतावरी के रस (10-20 मिली) में गुड़ मिलाकर पीने से वात विकार के कारण होने वाला बुखार उतर जाता है।
  • 20-30 मिली गुडूची के काढ़ा में पिप्पली चूर्ण मिला ले। इसके अलावा छोटी कटेरी, सोंठ तथा गुडूची के काढ़ा (20-30 मिली) में पिप्पली चूर्ण मिलाकर पीने से वात और कफज विकार के कारण होने वाला बुखार, सांस के उखड़ने की परेशानी, सूखी खांसी तथा दर्द की परेशानी ठीक होती है।
  • सुबह के समय 20-40 मिली गुडूची के चटनी में मिश्री मिलाकर पीने से पित्त विकार के कारण होने वाले बुखार में लाभ होता है।
  • गुडूची, सारिवा, लोध्र, कमल तथा नीलकमल अथवा गुडूची, आँवला तथा पर्पट को समान मात्रा में मिलाकर काढ़ा बनायें। इस काढ़ा में चीनी मिलाकर पीने से पित्त विकार के कारण होने वाले बुखार में लाभ होता है।
  • बराबर मात्रा में गुडूची, नीम तथा आँवला से बने 25-50 मिली काढ़ा में मधु मिलाकर पीने से बुखार की गभीर स्थिति में लाभ होता है।
  • 100 ग्राम गुडूची के चूर्ण को कपड़े से छान लें। इसमें 16-16 ग्राम गुड़, मधु तथा गाय का घी मिला लें। इसका लड्डू बनाकर पाचन क्षमता के अनुसार रोज खाएं। इससे पुराना बुखार, गठिया, आंखों की बीमारी आदि रोगों में फायदा होता है। इससे यादाश्त भी बढ़ती है।
  • गिलोय के रस तथा पेस्ट से घी को पकाएं। इसका सेवन करने से पुराना बुखार ठीक होता है।
  • बराबर मात्रा में गिलोय तथा बृहत् पञ्चमूल के 50 मिली काढ़ा में 1 ग्राम पिप्पली चूर्ण तथा 5-10 ग्राम मधु मिलाकर पिएं। इसके अलावा गुडूची काढ़ा को ठंडा करके इसमें एक चौथाई मधु मिलाकर पिएं। इसके अलावा आप 25 मिली गुडूची रस में 500 मिग्रा पिप्पली चूर्ण तथा 5-6 ग्राम मधु मिला भी पी सकते हैं। इससे पुराना बुखार, सूखी खाँसी की परेशानी ठीक होती है और भूख बढ़ती है।
  • गुडूची काढ़ा में पिप्पली चूर्ण मिलाकर सेवन करने से बुखार की गंभीर स्थिति में लाभ होता है। बुखार के रोगी को आहार के रूप में गुडूची के पत्तों की सब्जी शाक बनाकर खानी चाहिए।
  • पतंजलि की गिलोय घनवटी का सेवन करने से भी लाभ होता है।

एसिडिटी में  गिलोय का प्रयोग :-

  • गिलोय के 10-20 मिली रस के साथ गुड़ और मिश्री के साथ सेवन करने से एसिडिटी में लाभ होता है।
  • गिलोय के 20-30 मिली काढ़ा अथवा चटनी में 2 चम्मच शहद मिलाकर पीने से एसिडिटी की समस्या ठीक होती है
  • इसके अलावा 10-30 मिली काढ़ा में अडूसा छाल, गिलोय तथा छोटी कटोरी को बराबर भाग में लेकर आधा लीटर पानी में पकाकर काढ़ा बनायें। ठंडा होने पर 10-30 मिली काढ़ा में मधु मिलाकर पीने से सूजन, सूखी खांसी, श्वास तेज चलना, बुखार तथा एसीडिटी की समस्या ठीक होती है।

कफ की बीमारी मे गिलोय का प्रयोग :-

गिलोय को मधु के साथ सेवन करने से कफ की परेशानी से आराम मिलता है।

ह्रदय को स्वास्थ्य प्रदान करता है गिलोय :-

काली मिर्च को गुनगुने जल के साथ सेवन करने से सीने का दर्द ठीक होता है। ये प्रयोग कम से कम सात दिनों तक नियमित रूप से करना चाहिए।

कैंसर में गिलोय का प्रयोग :-

स्वामी रामदेव के पतंजलि आश्रम में अनेक ब्लड कैंसर के रोगियों पर गेहूँ के ज्वारे के साथ गिलोय का रस मिलाकर सेवन कराया गया। इससे बहुत लाभ हुआ। आज भी इसका प्रयोग किया जा रहा है और इससे रोगियों को अत्यन्त लाभ होता है।

लगभग 2 फुट लम्बी तथा एक अगुंली जितनी मोटी गिलोय, 10 ग्राम गेहूँ की हरी पत्तियां लें। इसमें थोड़ा-सा पानी मिलाकर पीस लें। इसे कपड़े से निचोड़ कर 1 कप की मात्रा में खाली पेट प्रयोग करें। पतंजलि आश्रम के औषधि के साथ इस रस का सेवन करने से कैंसर जैसे भयानक रोगों को ठीक करने में मदद मिलती है।

गिलोय को कितनी मात्रा में सेवन करे –  

काढ़ा – 20-30 मिली

रस – 20 मिली

अधिक लाभ के लिए चिकित्सक के परामर्शानुसार इस्तेमाल करें।

गिलोय की सेवनीय विधि :-

  • काढ़ा के रूप में
  • रस के रूप में

गिलोय के नुकसान  –

गिलोय के लाभ की तरह गिलोय के नुकसान भी हो सकते हैंः-

गिलोय डायबिटीज (मधुमेह) कम करता है। इसलिए जिन्हें कम डायबिटीज की शिकायत हो, वे गिलोय का सेवन न करें।

इसके अलावा गर्भावस्था के दौरान भी इसका सेवन नहीं करना चाहिए।

गिलोय कहां पाया जाता है  –

यह भारत में सभी स्थानों पर पायी जाती है। कुमाऊँ से आसाम तक, बिहार तथा कोंकण से कर्नाटक तक गिलोय मिलती है। यह समुद्र तल से लगभग 1,000 मीटर की ऊँचाई तक पाई जाती है।

गिलोय से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले सवाल  –

1- क्या सर्दियों में गिलोय का सेवन है स्वास्थ्य के लिए हितकारी?

आयुर्वेदिक चिकित्सकों के अनुसार, गिलोय में ऐसे औषधीय गुण होते हैं जो सर्दियों में होने वाले सर्दी-जुकाम या मौसमी बुखार को कम करने में मदद करते हैं। इसीलिए लोगों को सर्दियों में गिलोय का सेवन करने की सलाह दी जाती है। सर्दी के मौसम में आप गिलोय का सेवन चूर्ण, जूस या टैबलेट के रूप में कर सकते हैं।

2- क्या गिलोय का जूस पीने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी पॉवर ) बढ़ती है?

आयुर्वेद के अनुसार, गिलोय में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) बढ़ाने वाले गुण होते हैं। अगर आप मौसम बदलने पर अक्सर बीमार पड़ जाते हैं तो यह दर्शाता है कि आपके शरीर की रोगों से लड़ने की शक्ति कमजोर है। ऐसे में गिलोय जूस का सेवन करना आपके लिए काफी उपयोगी हो सकता है। इसके नियमित सेवन से शरीर जल्दी बीमार नहीं पड़ता है और कई रोगों से बचाव होता है।

3- गिलोय जूस को कब,कितनी मात्रा में  और कैसे पीना चाहिए?

अगर आपके घर पर गिलोय का पौधा है तो आप घर पर ही इसका जूस निकाल सकते हैं। वैसे गिलोय का जूस आजकल आसानी से बाज़ार में मिल जाता है। इस जूस को आप किसी भी समय ले सकते हैं लेकिन सुबह नाश्ते में पहले इसका सेवन ज्यादा फायदेमंद माना जाता है। चिकित्सक द्वारा बताई गई जूस की मात्रा में उतनी ही मात्रा में पानी मिलाकर इसका सेवन करें। 

4- क्या कोरोना वायरस से बचाव के लिए गिलोय घन वटी का सेवन करना चाहिए?

आयुर्वेदिक चिकित्सकों के अनुसार, कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए इम्यूनिटी का मजबूत होना ज़रूरी है। ऐसे में गिलोय घन वटी का सेवन काफी उपयोगी है क्योंकि यह इम्यूनिटी बढ़ाने की कारगर आयुर्वेदिक दवा है। चिकित्सक की सलाह अनुसार गिलोय घनवटी का  नियमित सेवन करें यह कोविड-19 समेत कई अन्य संक्रमण से बचाव में सहायक है।