आखिर किस खामियों के चलते डीजल कार को 10 साल में ही सरकार बैन कर रही है?

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दिल्ली में अब पुरानी डीजल कारों पर एक्शन की तैयारी है. बताया जा रहा है कि जनवरी 2022 से 10 साल पूरे करने वाले डीज़ल से चलने वाले सभी वाहनों का रजिस्ट्रेशन कैंसल कर दिया जाएगा. वजह ये है कि NGT के आदेश के अनुसार दिल्ली-NCR में 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों को चलाने पर प्रतिबंध है. इसके बाद सवाल ये है कि आखिर डीजल इंजन कार में ऐसा क्या होता है कि इसे प्रदूषण की वजह से बैन किया जा रहा है.

माना जाता है कि पेट्रोल इंजन के मुकाबले डीजल इंजन कार जल्दी प्रदूषण के लिए हानिकारक साबित हो जाती है यानी कुछ साल बाद ये कारें पेट्रोल की कार के मुकाबले ज्यादा प्रदूषण फैलाती हैं. इस वजह से डीजल इंजन को 10 साल और पेट्रोल इंजन की कारों को 15 साल की छूट दी गई है. पेट्रोल और डीजल दोनों ही एक पदार्थ पेट्रोलियम से निकलता है. इन दोनों में अहम फर्क रिफाइनिंग पर ही आधारित होता है. पेट्रोल ज्यादा रिफाइन्ड होता है और इसके ज्यादा रिफाइन होने की वजह से यह महंगा और पर्यावरण के लिए कम खतरनाक होता है. वहीं, डीजल में रिफाइनिंग प्रोसेस अलग होती है और कम रिफाइन होने की वजह से यह सस्ता और पर्यावरण के लिए खतरनाक होता है.

डीजल से होने वाला उत्सर्जन वाहनों से निकलने वाले प्रदूषक तत्वों में सबसे खराब है. कई साइंस की रिपोर्ट के अनुसार, डीजल कारें ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करती हैं और पेट्रोल इंजन की तुलना में अधिक नाइट्रोजन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं. डीजल कारों से वायु, जल और मृदा में प्रदूषण होता है और इस वजह से शरीर को काफी नुकसान होता है. इसके अलावा उत्सर्जन ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है.

डीजल को भी पेट्रोलियम से ही निकाला जाता है. पेट्रोल इंजन की तुलना में डीजल चार गुना ज्यादा नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और 22 गुना ज्यादा खतरनाक कण उत्सर्जित करता है, हालांकि यह 15 फीसदी कम कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ता है. इसके अलावा, डीजल में मौजूद सल्फर नामक धातु सल्फर डाइऑक्साइड का निर्माण करता है, जो भी पर्यावरण के लिए खतरनाक है. पेट्रोल में डीजल की तुलना में CO2 और कार्बन मोनोऑक्साइड का उच्च स्तर होता है, लेकिन डीजल जैसे सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर का उत्पादन नहीं करता है.

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